भारत में इस साल खरीफ फसलों की बुआई ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 110.46 मिलियन हेक्टेयर का आंकड़ा छू लिया। इसमें सबसे बड़ी वृद्धि दालों की बुआई में देखी गई, जिसमें 7.79% की वृद्धि दर्ज की गई। तूर (अरहर) की खेती में 4.65 मिलियन हेक्टेयर तक की बुआई हुई, जो इस सफलता का प्रमुख कारण है। यह वृद्धि इस बात का संकेत है कि भारतीय कृषि कठिन चुनौतियों के बावजूद मजबूती से आगे बढ़ रही है।
हालांकि, मॉनसून के अनुकूल रहने से शुरुआती बुआई बेहतर हुई, लेकिन इसके देर से वापस लौटने से फसलों की कटाई में देरी हो सकती है, जिससे उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर फसल समय पर नहीं काटी गई, तो इसका असर बाजार पर पड़ेगा, जिससे आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हो सकती है।
दालों की खेती में वृद्धि से बाजार में स्थिरता की उम्मीद
दालों की बुआई में इस बढ़ोतरी से उपभोक्ताओं को राहत मिलने की उम्मीद है, जो पिछले कुछ वर्षों में कीमतों के उतार-चढ़ाव का सामना कर रहे थे। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर आने वाले हफ्तों में मौसम ने साथ दिया, तो यह फसल बाजार को स्थिरता प्रदान कर सकती है।
कृषि में अनुकूलनशीलता की जरूरत
इस वर्ष का खरीफ सीजन न केवल किसानों की मेहनत का परिणाम है, बल्कि यह बदलते जलवायु पैटर्न के प्रति अनुकूलनशील कृषि पद्धतियों की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है। जलवायु-प्रतिरोधी फसल किस्मों, जल संरक्षण तकनीकों और बेहतर भंडारण प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता अब और अधिक स्पष्ट हो गई है।
निष्कर्ष:
2024 का खरीफ सीजन भारतीय कृषि की संभावनाओं को उजागर करता है, लेकिन इसके साथ ही हमें सतर्क रहना होगा ताकि जलवायु की अनिश्चितताओं से यह सफलता कमजोर न हो। विशेषज्ञों और किसानों की नजरें अब अंतिम फसल पर टिकी हैं, और उम्मीद की जा रही है कि यह सीजन देश की खाद्य सुरक्षा को मजबूती प्रदान करेगा।