आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: आज की स्ट्रगल स्टोरी शिखा मल्होत्रा की। शाहरुख खान की फिल्म फैन में एक छोटा सा रोल निभाकर बॉलीवुड की पारी शुरू करने वाली शिखा की कहानी काफी दिलचस्प भी है और मोटिवेट करने वाली भी। 12 साल की उम्र में पैरालिसिस का शिकार हुईं शिखा ने सुसाइड अटैम्प्ट किया।

कॉल सेंटर में काम किया फिर साउथ की फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी किए। लोगों से कई अच्छे-बुरे ऑफर भी मिले। कोरोना काल में BMC के कैम्पस में नर्स बनकर लोगों की सेवा की। इस दौरान खुद उन्हें भी ब्रेन स्ट्रोक हुआ। मगर शिखा ने किसी भी हालात में हार नहीं मानी।

पढ़िए, शिखा मल्होत्रा के संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी…

बचपन कैसा बीता?

मेरा जन्म दिल्ली के आरामबाग में हुआ था। स्कूलिंग भी वहीं से हुई। परिवार में मां-पापा और मुझे से बड़े एक भाई हैं। बचपन से ही मुझे कला में रुचि थी। ये खूबी मुझे मां से मिली। मां-पापा की स्टोरी भी काफी अलग है। 13 साल की उम्र में पापा ने मां से शादी कर ली थी। मेरे ननिहाल वाले आर्थिक रूप से कमजोर थे। इस कारण से दादी मां को बिल्कुल पसंद नहीं करती थीं। नतीजतन शादी के 1 साल भी नहीं बीते थे, दोनों का तलाक हो गया। फिर वो लोग 7 साल अलग रहे।

इसी दौरान नाना ने मां को आगरा से नर्सिंग का कोर्स कराया। इसके साथ मां ने गृहशोभा और सहेली जैसी मैगजीन्स के लिए मॉडलिंग भी की। दूर रहकर भी मां-पापा का प्यार कम नहीं हुआ। आखिरकार 7 साल बाद दोनों ने फिर से शादी कर ली।

शादी के बाद मेरे बड़े भाई का जन्म हुआ। इसके बाद मां फिर से प्रेग्नेंट हुईं। एक दिन वो भाई को लेकर कहीं जा रही थीं। पापा उन्हें बस में बिठाने गए थे। तभी बस के भीतर कुछ लड़के आपस में लड़ाई करने लगे। उनमें से किसी ने मां को ठोकर मार दी और वो बस से नीचे गिर गईं। इतने में बस का पिछला पहिया उनके एक पैर पर चढ़ गया।

उस पैर को ठीक होने में बहुत वक्त लगा। सर्जरी भी हुई। हालांकि, मां की चाल से कोई इस बात अंदाजा नहीं लगा सकता कि उनके साथ इतना बड़ा हादसा हुआ है। इसी दुर्घटना में मां का मिसकैरेज भी हो गया था। इसके बाद मेरा जन्म हुआ। मां हमेशा कहती हैं- मुझे उस मिसकैरेज का कभी बहुत दुख नहीं हुआ। शिखा के जन्म से वो सारे घाव भर गए हैं।

मां का ही असर मुझ पर पड़ा। जब मैं छोटी थी, तभी वो मुझे मंडी हाउस नाटक दिखाने ले जाया करती थीं। कम उम्र में ही मैंने भी कथक और संगीत सिखाना शुरू कर दिया था। पापा कुछ ना कुछ करके हमारी सभी जरूरतों को पूरा करते थे। कभी किसी चीज की कमी पूरी नहीं होने थी। कमाई कोई खास अच्छी नहीं थी, लेकिन फिर भी मां-पापा ने हमारी सारी ख्वाहिशों को पूरा किया। इन चीजों को पूरा करने के लिए उन्होंने कर्ज भी लिए।

पैरालिसिस का अटैक कब आया?

मैं 8वीं क्लास में थी। इस वक्त मेरी उम्र सिर्फ 12 साल थी। L.K.G या U.K.G मैं नहीं पढ़ी थी। सीधे क्लास 1 से पढ़ाई शुरू हुई थी, इसलिए 12 साल की उम्र में 8वीं में थी। एक दिन मैं सो रही थी। दोपहर के 12 बजे, लेकिन मैं बिस्तर से उठ ना सकी। घरवालों को ये बात खटकी। उन्हें एहसास हुआ कि मैं इतनी देर तक कभी नहीं सोती हूं। वो लोग मुझे देखने कमरे में आए। मेरी खराब हालत देख वो मुझे सीधे राम लोहिया अस्पताल ले गए। वहां पर मेरा इलाज लंबे वक्त तक चला। शुरुआत के कुछ दिनों तक डॉक्टर भी ये बात समझ ही नहीं पाए कि पैरालिसिस का अटैक क्यों आया है। बाद में कई डाॉक्टर्स की रिसर्च के बाद पता चला कि एक वायरस की वजह से मैं पैरालिसिस का शिकार हुई।

कुछ महीने बाद कमर तक का हिस्सा ठीक हो गया, लेकिन निचले भाग से मैं कोई भी काम करने में सक्षम नहीं थी। खुद की ये हालात मुझे परेशान करने लगी थी। परिवार वाले भी मेरी इस सिचुएशन से परेशान रहते थे। मेरी देख रेख के कारण भाई ने भी स्कूल जाना बंद कर दिया था। पेरेंट्स और भाई की ये हालात मैं दुखी रहने लगी।

उस वक्त इतनी छोटी थी कि इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि कुछ समय बाद ये सारी चीजें ठीक हो जाएंगी। इसी घटना को एक साल ही गुजरा था कि मैंने सुसाइड करने की कोशिश की। लगा कि मेरे इस कदम से सभी की तकलीफें दूर हो जाएंगी। सर्जिकल ब्लेड में मैंने अपने हाथ में 4-5 कट मार लिए। जब मां ने मुझे इस हालत में देखा था तो पहले थप्पड़ मारा और फिर समझाया कि इन छोटी-छोटी चीजों से घबराना नहीं चाहिए। बाद में वो मेरे लिए बहुत रोईं। उन्होंने कहा कि वो मेरे लिए पूरी दुनिया से लड़ रही हैं और मैं इतना गलत काम कर रही। बाद में डॉक्टर ने तुरंत इलाज कर मेरी जान बचा ली। हालांकि, बहुत खून बह गया था।