आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : कमर्शियल फिल्मों के लिहाज से इन दिनों हैवी VFX वाली वैसी फिल्में भी बन रहीं, जो फ्यूचर में सेट है। इससे पहले भी इस तरह की फिल्में बनती रहीं है पर हिंदी सिनेमा में इनकी गिनती कम है। अब निर्माता जैकी भगनानी ‘गणपत’ लेकर आ रहे हैं। इसकी कहानी पांच दशक आगे के वर्ल्ड में सेट है। जैकी ने इस फिल्म की चुनौतियों, संभावनाओं और स्टार कास्ट के एफर्ट पर बात की…

गणपत एक्शन फिल्म है, दांव भी बड़ा है। हाउ इज द जोश?

जोश बहुत-बहुत हाई है। कोरोना काल में मुझे विकास बहल का फोन आया था। उन्होंने कहा कि एक अलग फिल्म बनानी है जो अलग ही दुनिया में सेट हो। उस दौरान हम सबने दुनियाभर का सिनेमा देखा था।

महसूस हुआ कि हिंदी सिनेमा में भी क्यों ना कोई नई चीज की जाए? बेशक बाप-बेटे, दादा-पोते के इमोशन इसमें रूटेड हैं। हमारी ऑडियंस रेडी है कि हम उन्हें कोई नया जॉनर दें। हमारी कहानी में एक तबका है, जो बहुत आगे निकल चुका है। वहीं दूसरा आज के मुकाबले भी काफी पीछे चला गया है।

यह फिल्म कौन से ईयर में सेट है ? कहानी के बारे में कुछ बताइए

करीबन 50 साल आगे की कहानी है। जिस तरीके से दुनिया चल रही है, आगे चलकर हमारे रिसोर्सेज खत्म हुए तो क्या स्थिति पैदा होगी।

संयोग ही है कि कोविड से ठीक पहले मैंने एक शॉर्ट फिल्म की थी कार्बन। उसमें भी सेम कहानी थी। फ्यूचर वर्ल्ड में स्मगलिंग की कहानी थी। किरदार मास्क पहनते थे। तब किसने सोचा था कि आगे चलकर असल जीवन में भी लोगों को मास्क में रहना होगा।

बहरहाल, यहां गणपत में हमने नई सेटिंग में अलग इमोशन की कहानी बयां की है। बेशक फिल्म में कोर इमोशन तो बदले वाला ही है।

टाइगर-कृति ने कितनी मेहनत की है इसके लिए?

एक्शन जॉनर की फिल्म में खून-पसीना बहाने के सिवाय कोई चारा होता ही नहीं है। बिना उसके आला दर्जे का एक्शन मुमकिन ही नहीं था। कृति ने बड़ी मेहनत की। साल भर नान-चाकू चलाना सीखा। पूरे साल उन्होंने अपने ट्रांसफॉरमेशन पर टाइम दिया। टाइगर, बेशक देश के सबसे बड़े एक्शन स्टार हैं पर उनके जहन में भी था कि अब तक की फिल्मों में जो उनका एक्शन था, यहां उससे हाई लेवेल रहे।

फिल्म में फ्यूचर वर्ल्ड किस तरह क्रिएट किया?

हमने कई बड़े आर्कियोलॉजिस्ट और इंजीनियर्स से संपर्क किया। उनसे बातें कर यह वर्ल्ड क्रिएट किया। साथ ही यहां एक तबका वह भी है, जो 100 साल पीछे रह गया है। उनकी दुनिया क्रिएट करना भी बड़ी बात थी। यह आईडिया विकास बहल का था।

उनका जब पहली बार मेरे पास कॉल आया था तो उन्होंने कहा कि एक अलग तरह की कहानी बनानी है। तो मैंने जवाब दिया कि अगर अलग तरह की कहानी है तो कल ही मिलो, रेगुलर है तो साल भर बात करना।

प्रभास की ‘कल्की 2898 AD’ भी फ्यूचर में सेट है। क्या यह कमर्शियल फिल्मों की मजबूरी है कि स्क्रीन पर लार्जर दैन लाइफ ही दिखाई जाए?

हमारी फिल्म तो दो-ढ़ाई साल पहले से बन रही है। अगर हमने किसी और को वैसी चीज करने के लिए इंस्पायर किया है तो यह बड़ी बात है। दूसरी चीज यह कि मौजूदा और तत्कालीन समय की दर्शक क्या सोचते हैं वह समझना बहुत जरूरी है। यह भी जानना जरूरी है कि कोविड काल के बाद से खास तौर पर लोगों के लिए पैसे से ज्यादा उनका वक्त कीमती हो गया है। तो हम वैसी चीज उन्हें दें जो उनके वक्त को जस्टिफाई करे।

यह फिल्म कितने दिनों में शूट हुई? ट्रेड के दावे हैं कि इसका बजट 200 करोड़ का है?

बजट की बात करूंगा तो फिल्म से जुड़े लोगों की कड़ी मेहनत से ध्यान हट जाएगा इसलिए मैं बिल्कुल नहीं चाहूंगा कि मेहनत के बजाय बजट की बात की जाए। बाकी तो आजकल बच्चे भी जानते हैं कि बेसिक VFX वाली भी किसी फिल्म का बजट कितना होता है। बाकी इसकी शूटिंग में करीबन 100 दिन तो लगे हैं।

फिल्म में कितने VFX शॉट्स हैं?

3000 से ज्यादा VFX शॉट्स तो हैं हीं। वह तो इसका टीजर और ट्रेलर देखकर ही समझ आ रहा है। हर फिल्म को देखने का नजरिया अलग है। यह फिल्म फ्यूचर में सेट है, मगर हमने कोशिश की है कि यह सबके समझ में भी आ जाए। पेचीदा न बने।

अभी इसके पार्ट 2 की शूटिंग तो नहीं हुई है ना?

उम्मीद है कि लोगों को यह पसंद आए तो फिर हमें इसका पार्ट 2 बनाने का भी प्रोत्साहन मिलेगा। हम उसे इससे भी बड़े स्केल पर बनाएंगे।