आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : तारीखः 10 जुलाई, 2019। इंग्लैंड के मैनचेस्टर शहर का ओल्ड ट्रैफर्ड ग्राउंड। महेंद्र सिंह धोनी 2 इंच के फासले से रन आउट हो जाते हैं। इसी के साथ वर्ल्ड कप जीतने की भारत की उम्मीद भी रन आउट हो जाती है। भारत सेमीफाइनल मैच 18 रन से हार कर वर्ल्ड कप से बाहर हो जाता है।

2013 में चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद यह पांचवां मौका था जब भारतीय टीम किसी ICC इवेंट के सेमीफाइनल या फाइनल में हारी थी। उसके बाद तीन बार और ऐसा हो चुका है। पिछले 10 साल में 9 अलग-अलग ICC टूर्नामेंट में 8 बार ऐसा हो चुका है जब भारतीय टीम नॉकआउट राउंड का कोई मैच हारकर बाहर हो गई।

अभी इस तस्वीर का जिक्र क्यों? क्योंकि एक बार फिर इसी तरह दिल की धड़कनें बढ़ाने वाला मुकाबला हमारे सामने है। यह भी वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल ही है। 15 नवंबर को मुंबई में हमारी टीम फिर उसी न्यूजीलैंड के खिलाफ उतरेगी। सवाल उठ रहा है कि इंडियन टीम कहीं एक बार फिर से नॉकआउट मुकाबले में फियर ऑफ फेल्योर का शिकार तो नहीं हो जाएगी। फियर ऑफ फेल्योर यानी मुकाबले से पहले फेल हो जाने का डर।

बड़े मैचों में इंडिया के फियर ऑफ फेल्योर को समझने के लिए हमने ICC टूर्नामेंट में टीम इंडिया के 48 सालों के सफर का एनालिसिस किया है। इसे हमने 4 फेज में बांटा है…

1975 से 1983: 1975 और 1979 वर्ल्डकप में भारत नॉकआउट में पहुंचा ही नहीं। 1983 में पहली बार नॉकआउट में पहुंचे और चैंपियन बने।

1984 से 2006: भारत ने 11 ICC टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। इनमें से 5 में हम सेमीफाइनल या फाइनल में हारे। 1 फाइनल बारिश के कारण पूरा नहीं हुआ, जिसमें भारत संयुक्त विजेता बना था। 5 टूर्नामेंट ऐसे थे जिसमें भारत नॉकआउट राउंड में पहुंचा ही नहीं। 1983 वर्ल्डकप के बाद से 2007 के वनडे वर्ल्डकप तक भारत एक भी ICC टूर्नामेंट नहीं जीत सका।

2007 से 2013: 2007 टी-20 वर्ल्डकप से लेकर 2013 चैंपियंस ट्रॉफी तक 7 ICC टूर्नामेंट में भारत ने हिस्सा लिया। इसमें टीम इंडिया 3 के नॉकआउट राउंड में पहुंची और तीनों में खिताब जीता।

2014 से 2023: अभी चल रहे वर्ल्डकप से पहले भारत 9 में से 8 ICC टूर्नामेंट के नॉकआउट में पहुंचा और एक भी खिताब नहीं जीत पाया है।

लीग मैचों में भारत के मुकाबले में कोई नहीं

पिछले 10 सालों में भारतीय टीम ICC टूर्नामेंट के लीग मैचों में शानदार खेल दिखा रही है, लेकिन सेमीफाइनल या फाइनल में बड़े अंतर से हार जाती है। न्यूजीलैंड के खिलाफ 2019 वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल छोड़ दें तो बाकी 7 मैचों में भारतीय टीम पहले बैटिंग करने पर कम से कम 6 विकेट से और बाद में बैटिंग करने पर कम से कम 95 रन से हारी है।

2013 की चैंपियंस ट्रॉफी के बाद से जितने भी ICC टूर्नामेंट हुए हैं उनमें टीम इंडिया मैच जीतने के लिहाज से सबसे कामयाब टीम है। भारत ने तब से अब तक अलग-अलग ICC टूर्नामेंट के 44 लीग मैचों में से 38 जीते हैं। यानी भारत ने 86% लीग मैच जीते हैं। वहीं, भारतीय टीम इस दौरान 9 में से 8 टूर्नामेंट में नॉकआउट राउंड में बाहर हुई। यानी 89% मौकों पर भारत को एक्जिट टिकट नॉकआउट राउंड में ही मिला।

लीग मैचों में भारत की सफलता से जाहिर है कि टीम अगर 10 साल से कोई बड़ा खिताब नहीं जीत पाई है तो उसके पीछे क्रिकेटिंग रीजन नहीं है। एक्सपर्ट्स भी कहते हैं कि BCCI की प्लानिंग में कोई बड़ी खामी नजर नहीं आती है और न ही टीम कॉम्बिनेशन में कोई खराबी रही है। फिर नॉकआउट में हार की वजह क्या है?

क्रिकेट एक्सपर्ट्स और स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट इसके पीछे फियर ऑफ फेल्योर यानी नाकाम होने के खौफ को वजह बताते हैं।

फियर ऑफ फेल्योर क्या है?

फियर ऑफ फेल्योर एक ऐसी अवस्था है जिसमें लोग ऐसा कोई फैसला नहीं लेते, जिसमें हार की संभावना हो। वो न तो नई चीजें ट्राई करते हैं और न ही रिस्क लेना चाहते हैं। इसके पीछे चार प्रमुख कारण बताए जाते हैं…

हारने का डरः आप हर हाल में जीतना चाहते हो, लेकिन मन में डर बैठ जाता है कि नहीं जीत सकते।

लोग क्या कहेंगेः मैच से पहले यह डर बैठ जाना कि हार की स्थिति में लोग क्या कहेंगे। समाज, देश इस नतीजे को किस रूप में लेगा।

शर्मिंदा होने का डरः इस खौफ का आ जाना कि फेल होने की स्थिति में दूसरों के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा।

उम्मीद पर खरा न उतरने का डरः आपको पता होता है कि लोगों की आपसे उम्मीदें आसमान छू रही हैं, लेकिन आपको डर लगता है कि लोगों की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएंगे।

स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट करनबीर सिंह और मेंटल कोच प्रकाश राव के मुताबिक…

इतने बड़े टूर्नामेंट के नॉकआउट मैच में प्रेशर होना लाजिमी है। अगर खिलाड़ी मैच को चैलेंज की तरह लेते हैं तो पॉजिटिव रिजल्ट्स की संभावना ज्यादा होती है और अगर थ्रेट की तरह लेते हैं तो खेल पर नेगेटिव इम्पैक्ट पड़ता है।

खिलाड़ी जब ये सोचता है कि फैन्स क्या बोलेंगे, कोच क्या सोचेगा, हार गए तो क्या होगा… ऐसे विचार प्रेशर डालते हैं। इसके अलावा भी कई सारे एक्सटर्नल फैक्टर होते हैं।

इनकी वजह से खिलाड़ियों ने जो न्यूरल पाथवेज डेवलप किए हैं, वो ब्लॉक हो जाते हैं। मसल मेमोरी शॉर्ट टर्म के लिए मिटने लगती है और खिलाड़ी ब्लैक आउट हो जाता है। ब्लैक आउट होने पर सिचुएशन के मुताबिक फैसले नहीं ले पाता। खिलाड़ी को रूटीन मोशन पाने में भी दिक्कत होती है।

खिलाड़ी इसीलिए इतनी ज्यादा प्रैक्टिस करते हैं ताकि ऐसी सिचुएशन में उनकी मसल मेमोरी बनी रहे और वो इस सिचुएशन से बाहर निकल सकें।

बड़े मैच में प्रेशर की वजह से प्रॉसेस की बजाए नतीजे पर ज्यादा फोकस किया जाता है। जिससे दिमाग तय नहीं कर पाता कि अभी क्या करना चाहिए। इससे खिलाड़ी की मूवमेंट धीमी हो जाती है। इसका मैच के नतीजे पर नकारात्मक असर पड़ता है। चोकिंग किसी के साथ कभी भी हो सकती है। चाहे खिलाड़ी जितना भी अनुभवी क्यों न हो।

भारत के पूर्व कप्तान एमएस धोनी भी कई बार कह चुके हैं कि किसी भी मैच में उनका फोकस रिजल्ट से ज्यादा एक्शन पर होता है। यानी वो क्या कर सकते हैं उस पर फोकस करते हैं न कि नतीजा क्या होगा।

माल्कम ग्लैडवेल ने अपनी स्टडी ‘द आर्ट ऑफ फेल्योर’ में लिखा कि फियर ऑफ फेल्योर की वजह से चोकिंग होती है। पैनिक और चोकिंग बिल्कुल विपरीत हैं। कम सोचने से पैनिक होता है, जबकि ज्यादा सोचने से चोकिंग होती है। चोकिंग में खिलाड़ी का इंस्टिंक्ट गायब हो जाती है।

सेमीफाइनल में भारत पर कितना हावी होगा हार का डर?

स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट करनबीर सिंह के मुताबिक टीम इंडिया इस वक्त राइट माइंडसेट में है और इस बार फियर ऑफ फेल्योर को मात देने के लिए बहुत अच्छी पोजिशन में है। इसे 3 पैमानों पर देखा जा सकता है…

परफॉर्मेंस और टीम बिहेवियरः टीम इंडिया ने अब तक 9 लीग मैच खेले हैं। कमोबेश सभी मैचों में कन्विंसिंग जीत दर्ज की है। 9 मैचों में 6 अलग-अलग खिलाड़ी प्लेयर ऑफ द मैच बने हैं। इससे जाहिर होता है कि सभी खिलाड़ी टीम की जीत में कॉन्ट्रिब्यूट कर रहे हैं।

मेंटल स्टेटसः टीम इंडिया मनोवैज्ञानिक रूप से बेहद मजबूत है। न्यूजीलैंड को लीग स्टेज में हरा चुकी है। इस वर्ल्डकप से पहले 20 साल से हम न्यूजीलैंड से वर्ल्डकप में हार रहे थे। इस बार भारत ने इतिहास बदल दिया। वहीं, पाकिस्तान के खिलाफ वर्ल्ड कप में लगातार 8वीं जीत हासिल कर 31 साल से जारी इतिहास कायम भी रखा है। मतलब इस भारतीय टीम में इतना माद्दा है कि वह सकारात्मक इतिहास कायम रखे और नकारात्मक इतिहास बदल दे। भारतीय टीम पिछले 10 साल के ट्रैक रिकॉर्ड को भी पलट कर रख देने की क्षमता रखती है।

हाई प्रेशर मैच में टीम इंडिया ने हर क्षेत्र में अच्छा किया। चाहे पहले बैटिंग कर टारगेट सेट करना हो या बाद में बैटिंग कर टारगेट चेज करना हो भारतीय टीम दोनों ही चुनौतियों को काबू करने में सफल रही है। इससे साफ है कि टीम प्रेशर एब्जॉर्ब करने की क्षमता रखती है।

लीडरशिपः रोहित शर्मा 2 एशिया कप जीत चुके हैं। उनकी अगुआई में मुंबई इंडियंस 5 बार IPL चैंपियन बन चुकी है। वे ऐसे कप्तान नहीं हैं जिनके लिए ट्रॉफी जीतना नई बात होगी।