आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल / दिल्ली : देश के इतिहास में कई लोगों ने उस समय आपातकालीन संघर्ष को एक दृष्टि से द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम कहा है। और आज भी कई बार लगता है, ये सही व्याख्या है। विदेशी शासन के खिलाफ एक लंबा संघर्ष हुआ, स्वतंत्रता आन्दोलन हुआ। लेकिन देश के अंदर के ही अपने लोगों ने संविधान के प्रावधान का दुरुपयोग करके, देश के लोगों की आवाज को दमन करने का और जयप्रकाश नारायण जैसे व्यक्ति को भी दमन करने का कार्य किया, और सामान्य लोगों का दमन हुआ, इसलिए एक दृष्टि से द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम कहना योग्य है। ये आपातकाल क्यों हुआ? देश में आपातकाल तब होता है, जब देश असुरक्षित है। कोई व्यक्ति या पार्टी असुरक्षित है, अस्थिर है, उसके लिए संविधान के प्रावधान का उपयोग या दुरुपयोग करना यह लोकतंत्र में कभी भी नहीं होना चाहिए।
“आपातकाल में संविधान प्रदत्त नागरिकों के मौलिक अधिकारों को रद्द कर दिया था। यही कारण है कि किसी भी प्रकार – भाषण, लेखन, अभिप्राय – के अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य, संगठन स्वातंत्र्य आदि नहीं हो सकते थे।”
लोकतंत्र के इतिहास में काले अध्याय आपातकाल-1975 पर बातचीत के दौरान सरकार्यवाह ने कहा कि अभी 48 वर्ष पहले के घटनाक्रमों को याद करना थोड़ा कठिन होता है, लेकिन आपातकाल और उसके विरुद्ध का संघर्ष ऐसा है, उसकी एक-एक घटना याद रखने वाली बात है। मैं उस समय बंगलूरु विश्वविद्यालय में एमए का विद्यार्थी था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के प्रदेश स्तर के कार्यकर्ता के नाते मैं भी आंदोलन में सहभागी रहा। भ्रष्टाचार के विरोध में, बेरोजगारी समाप्त करने के लिए, शिक्षा पद्धति में परिवर्तन लाने के लिए एक संघर्ष का बिगुल बजा था तो मई के अंतिम सप्ताह तक देश के अंदर विद्यार्थी युवा संघर्ष समिति बनी थी और देश भर में जनता संघर्ष समिति और विद्यार्थी जन संघर्ष समिति, ऐसे दो आन्दोलन के मंच बने थे।
जून के महीने में तीन महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। इन तीनों का परिणाम आपातकाल लागू करने के रूप में हुआ। एक – जून आते-आते जेपी के नेतृत्व में आंदोलन देशव्यापी हो गया था, वह अत्यंत प्रखरता के चरम पर पहुँच गया था। दूसरा – गुजरात में हुए चुनाव में इंदिरा कांग्रेस की घोर विफलता हुई, वह हार गईं। जून 12 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने रायबरेली से इंदिरा गाँधी के लोकसभा चुनाव में जीत को निरस्त कर दिया। तीनों मोर्चे पर इंदिरा जीहार गयीं।
एक है – न्यायायिक, दूसरा है – राजनीतिक क्षेत्र में चुनाव में, तीसरा – जनता के बीच। इस कारण उन्होंने इस एक्स्ट्रीम क्रम का उपयोग किया। 25 जून को रात्रि आपातकाल घोषित कर दिया। उन दिनों न मोबाइल, न टीवी, कुछ नहीं था। आज के जमाने के लोगों को उस समय की परिस्थिति को समझना आसान नहीं है। 50 साल पहले हिन्दुस्तान में टीवी नहीं था और कम्प्यूटर्स नहीं थे। ई-मेल और मोबाइल आज हैं उस समय नहीं था, तो न्यूज कैसे मालूम हुआ? बीबीसी और आकाशवाणी से घोषणा होते ही पता चला। हम लोगों को सुबह 06:00 बजे के न्यूज से समाचार मिला। संघ की शाखा में गांधी नगर, बंगलूर में मैं और बाकी मित्र शाखा में थे, हमें शाखा जाते-जाते समाचार मिल गया।