आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : सनी देओल और अमीषा पटेल स्टारर फिल्म गदर-2 आज रिलीज हो चुकी है। फिल्म में तारा सिंह और सकीना एक बार फिर भारत-पाकिस्तान के बीच दुश्मनी के कारण मुश्किल का सामना करेंगे। तारा सिंह ने पहले पार्ट में अपने प्यार को हासिल करने के लिए पाकिस्तान में जंग छेड़ दी थी, लेकिन ये सिर्फ फिल्मी नहीं बल्कि ब्रिटिश आर्मी के भारतीय सोल्जर बूटा सिंह की असल कहानी है। फिल्म से जुड़े लोग भी ये मान चुके हैं कि ये फिल्म सोल्जर बूटा सिंह की कहानी से प्रेरित है।

बूटा सिंह ने भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान हुए दंगों में एक पाकिस्तान लड़की जैनब की जान बचाई थी, जिससे उन्हें प्यार हो गया। उनकी लगभग पूरी कहानी फिल्म गदरः एक प्रेम कथा में दिखाई गई, लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि असल जिंदगी में बूटा सिंह ने जैनब से अलग होने के गम में आत्महत्या कर ली थी, जबकि फिल्म में तारा सिंह और सकीना खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं। बूटा सिंह जैनब के घर में ही दफन होना चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान ने उनकी आखिरी इच्छा भी पूरी नहीं की।

बूटा सिंह की ट्रैजिक लव स्टोरी से प्रेरित होकर गदरः एक प्रेम कथा के अलावा शहीद-ए-मोहब्बत बूटा सिंह और वीर जारा भी बन चुकी है। अब उसी फिल्म गदरः एक प्रेम कथा का सीक्वल गदर 2 रिलीज हुआ है। इस फिल्म में तारा सिंह और सकीना की शादी के बाद की कहानी दिखाई जाएगी।

आज गदर 2 की रिलीज के साथ जानिए रियल लाइफ के तारा सिंह यानी बूटा सिंह की अधूरी प्रेम कहानी की दास्तान-

ब्रिटिश आर्मी का हिस्सा थे बूटा सिंह

गुलाम भारत के जालंधर, पंजाब में बूटा सिंह का जन्म एक सिख परिवार में हुआ। होश संभाला तो परिवार के कहने पर ये ब्रिटिश आर्मी का हिस्सा बन गए। जब वर्ल्ड वॉर 2 शुरू हुआ तो लॉर्ड माउंटबेटन की कमांड में बूटा सिंह बर्मा में रहे।

कुछ सालों बाद जब भारत लौटे तो आजादी की लड़ाई को हवा मिल चुकी थी। उस दौरान भी बूटा सिंह ब्रिटिश आर्मी के साथ जुड़े रहे। जब 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिली तो भारत-पाकिस्तान का बंटवारा भी हुआ। बंटवारे का सबसे ज्यादा असर पंजाब और उससे सटे इलाकों पर पड़ा, जहां बॉर्डर बन चुकी थी।

बॉर्डर पर रहने वाले लोगों का कत्ल हो रहा था। पाकिस्तान से आने वाली ट्रेनों में लाशें आ रही थीं। पाकिस्तान छोड़ने वाले लोग भी उसी रास्ते से भारत आ रहे थे।

ब्रिटिश हुकूमत खत्म होने के बाद बूटा सिंह भी सेवा से मुक्त हो गए और पंजाब के अपने गांव में खेती करने लगे। एक दिन खेती करते हुए अचानक उन्होंने देखा कि एक लड़की भीड़ के आक्रोश से अपनी जान बचाकर भाग रही है। वो लड़की सीधे बूटा सिंह से आकर टकराई और मदद की गुहार लगाने लगी। बूटा सिंह ने उन लोगों को रोका और अपनी जेब में जो कुछ जमापूंजी थी वो देकर विदा कर दिया। वो लड़की पाकिस्तान से आ रहे काफिले से अलग बिछड़ी हुई जैनब थीं। जब परिवार पर हमला हुआ तो जैनब जान बचाने में कामयाब हुईं और भागते-भागते बॉर्डर पार कर भारत पहुंच गईं।

दंगों का वो आलम था कि बूटा सिंह ने जैनब को अपने साथ आने को कहा और उन्हें अपने घर में ही पनाह दे दी। कुछ दिन गुजरे, फिर दंगे थमने लगे। कुछ दिनों बाद बूटा सिंह के घर में रह रही जैनब लोगों की नजरों में आ गईं। खबर फैलते ही कुछ दंगाइयों ने बूटा सिंह के घर के बाहर भीड़ लगा दी। उनकी सिर्फ यही जिद थी कि या तो जैनब को हमारे हवाले करो या उसे रिफ्यूजी कैंप भेज दो, जहां और भी पाकिस्तानी रह रहे थे।

बूटा सिंह भी कब तक जैनब को अपने साथ रख सकते थे, ऐसे में उन्होंने जैनब को रिफ्यूजी कैंप छोड़ना ही मुनासिब समझा। जैनब को छोड़ने जाते वक्त बूटा सिंह समझ चुके थे कि उन्हें उससे प्यार हो गया, लेकिन वो जैनब को साथ नहीं रख सकते थे।